जल प्रदूषण


जल प्रदूषण

 जब जल मे हानिकारक या विषैले  पदार्थ मिल जाते हैं। जिससे जल की  गुणवत्ता खराब हो जाती है। और ये जल मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाता है। इस प्रकार के हानिकारक पदार्थो का जल मे मिलना जल प्रदूषण कहलाता है आम तौर पर मानव गतिविधियों के कारण जल प्रदूषित होता है 

जैसे - बिना उपचार के ही खराब जल को नदियों और समुंद्र मे डालना ।

जब सडे- गले पदार्थ जल मे मिलते है तो जल गंदा हो जाता है।और जल मे ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ऑक्सीजन की कमी हो जाने से जल विष कारी हो जाता है ।जिससे अनेक प्रकार की बीमारियां होती है। जैसे - पेचिश, हैजा , पीलिया, तपेदिक आदि । 

जल प्रदूषण के कारक 

जल प्रदूषण के निम्न  कारक है।

(1)- प्राकृतिक प्रदूषण 

जब हवा मे मिले हुए धूल के कण वर्षा के समय वर्षा के साथ घुलकर जमीन पर आते है ।तो वर्षा का जल अम्लीय हो जाता है। SO2  वर्षा के जल के साथ घुलकर सल्फ्यूरिक अम्ल बनाते  है। जिससे जल का pH मान 5.7 से कम हो जाता है जिससे वर्षा का जल अम्लीय हो जाता है। और ये अम्लीय वर्षा कहलाती है। इसके अतिरिक्त कार्बन मोनो ऑक्साइड और कार्बन डाई ऑक्साइड भी जल मे घुल कर कार्बोनिक अम्ल बनाते है ।ये भी जल को अम्लीय बनाता है। और अम्लीय वर्षा का कारण बनता है।

अम्लीय वर्षा का जीव जन्तु ,पेड़ पौधे , प्राकृतिक संतुलन और पदार्थो पर बहुत ही विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। 

(2)-कृषि सम्बन्धी प्रदूषण 

  कृषि के लिए अनेक प्रकार के रसायनिक खदो और कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है।जैसे फास्फेट, नाइट्रेट व यूरिया आदि और कीटनाशकों मे D.D.T ,BHC आदि।        वर्षा के जल के साथ ये पदार्थ भी जल मे घुल जाते है।और बहकर जल स्रोतों में मिल जाते है।जिससे जल प्रदूषण होता है।

(3)- खनन प्रदूषण 

खनिजों को प्राप्त करने के लिए खनन किया जाता है।जिससे मिट्टी के साथ साथ अन्य अशुद्धियाँ भी बाहर आ जाती है।जो जल के साथ मिलकर जल को विषैला बनाता है।इसके अतिरक्त शुद्ध खनिज प्राप्त करने के लिए इसके धुलाई करनी पड़ती है। जिससे निकालने वाली गंदगी जल को गंदा करती हैं।

(4)- नगरपालिका प्रदूषण 

घरों से निकलने वाला कूड़ा करकट भूमिगत नालियो से होते हुए नदियों ,झीलों मे जाता है।इसी प्रकार कारखानों से निकालने वाला विषैला पदार्थ भी नदियों मे मिलता रहता है। सीवेज मे कार्बनिक पदार्थ, अ कार्बनिक पदार्थ और अन्य जहरीले पदार्थ मिले रहते है।जब कार्बनिक पदार्थो  का अपघटन होता है।तो उसमे ऑक्सीजन खर्च होती है।इस ऑक्सीजन की आपूर्ति नदी के जल में घुली ऑक्सीजन के द्वारा होती है।जिससे नदी मे ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। तथा नदी की स्वशोधी क्षमता खत्म हो जाती है। 


जल प्रदूषण के प्रभाव 

(१)-  मनुष्य पर प्रभाव  

प्रदूषित जल से मनुष्य को स्वास्थ्य संबंधी अनेक प्रकार की समस्याओं को सामना करना पड़ता है।प्रदूषित जल से पीलिया, हैजा, दस्त, टायफायड ,अपच ,जैसी बीमारियां होती है। 

(२)- जलीय पारितंत्र पर प्रभाव 

तालाबों,नदियों ,झीलों नहरों व जलशयो आदि का जलीय पारितंत्र  होता है।इसमें जीवो की अनेक प्रजातियां , वनस्पतियां होती है जो दूषित जल के कारण नष्ट हो जाती है तथा बचे जीवो के लिए खाद्य  श्रृंखला में कमी होने के कारण वे भी नष्ट हो जाते है। 

(३)- पेड़ पौधों पर प्रभाव 

सिंचाई के लिए यदि प्रदूषित जल का प्रयोग किया जाए तो इससे विषाक्त पदार्थ पेड़ पौधों मे भोजन के साथ पहुंच जाते है।जिसके कारण उनका विकास रुक जाता है।तथा इनके फलो को जहरीला बना देते है। जब मनुष्य इन फलों का सेवन करता है तो वह भी बीमार हो जाता है।

(४)- जीव जंतुओं पर प्रभाव 

प्रदूषित जल मे ऑक्सीजन की कमी होती है।जिससे कार्बनिक पदार्थ अपघटित नहीं हो पाते है । जो वातावरण मे दुर्गन्ध फैलाते है।इससे जीव जंतुओं पर प्रभाव पड़ता है। और उनका अस्तित्व खतरे मे आने लगता है।


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