जल प्रदूषण-उपचार
सीवेज को नदियों मे मिलाने से पहले उपचार करना चाहिए।ताकि नदियों का पानी जहरीला ना हो और जल प्रदूषण से बचा जा सके । अपशिष्ट जल का शोधन निम्न उद्देश्य के लिए करते है।
(1)- सीवेज के आयतन को कम करने के लिए
(2)- तेलीय पदार्थ को दूर करने के लिए
(3)- रोगजनक जीवाणु
(4)- निलम्बित कणों तथा कोलाइड कणों को दूर करने के लिए
(5)- उपचारित सीवेज को सिंचाई के लिए प्रयोग करने के लिए
(6)- सीवेज की तीव्रता को कम करने के लिए
अपशिष्ट जल के उपचार करने की विधियां
(1) प्रारंभिक उपचार
(2) द्वितीयक उपचार
(1) प्रारंभिक उपचार ( primary treatment)
इस उपचार मे कागज कपड़े, मिट्टी ,बजरी , रेत, चिकनाई, ग्रीस , लकड़ी आदि को अलग किया जाता है। इसके निम्न भाग है।
(a) छ न्नक (screen)
छ न्नक मे एक समान आकार के गोल या चौकोर छेद होते है।जिससे इसमें से बड़े आकार के कपड़े बजरी कागज लकड़ी आदि पास नहीं हो पाते है। जिन्हे समय समय पर हटा लिया जाता है।
(b) ग्रिट चैम्बर (grit chamber)
ग्रिट चैम्बर से 6 mm से कम आकार के अकार्बनिक पदार्थो को अलग किया जाता है।जैसे बजरी, बालू,गिट्टी आदि। इसमें सीवेज का वेग कम कर दिया जाता है जिससे ग्रिट आसानी से तली मे बैठ जाती है।फिर इसे अलग कर लिया जाता है। इसके लिए दो कक्ष बनाए जाते है। जब एक कक्ष प्रयोग मे होता है, तब दूसरा साफ किया जाता है।-
(c) स्किममिंग टैंक (skimming tank)
स्किममिंग टैंक का प्रयोग तेलीय पदार्थो को दूर करने के लिए किया जाता है।जैसे साबुन, चिकनाई, ग्रीस आदि।इनको अलग करने के लिए टैंक मे बैकल दीवारे बनी होती है।और टैंक की तली मे वायु डिफ्यूजर लगे होते है।जो नीचे से तेज़ रफ़्तार से वायु ऊपर की ओर भेजते है।इससे चिकनाई वाला पदार्थ झाग के रूप में बदल जाता है।जिसको फेन कुंड मे अलग कर लिया जाता है।इस प्रकार इनलेट से सीवेज प्रवेश करता है।और फेन टैंक में चिकनाई दूर होती है।
(2)द्वितीयक उपचार (Secondary treatment )
(a) अवसादन sedimentation
अवसादन की क्रिया में एक अवसादन टैंक होता है। जिसमे सीवेज का वेग बहुत ही कम कर दिया जाता है।जिससे उसमें उपस्थित भारी कण अपने भार के कारण नीचे बैठने लगने लगते है इस क्रिया मे 80%-90% कण नीचे बैठ जाते है।अवसादन दो प्रकार का होता है।
1)-सदा अवसादन (Plain sedimentation)
2)-स्कंदक युक्त अवसादन( Sedimentation with coagulant)
1)-सदा अवसादन (Plain sedimentation)
जिस अवसादन की क्रिया मे किसी प्रकार का कोई भी स्कंदक प्रयोग नहीं करते है।उसे सादा अवसादन कहते है।इस प्रकार के अवसादन मे कण अपने भार के कारण नीचे तली मे बैठ जाते है जिसे बाद में अलग कर लिया जाता है।
2)-स्कंदक युक्त अवसादन
सादे अवसादन मे बहुत ही महीन कण जिसे कोलॉइडी कण कहते है। वे नीचे नहीं बैठते है क्युकी उनके भार बहुत ही कम होते है।कोलॉइडी कणों का अलग करने के लिए कोलॉइडी कणों को संयुक्त कर दिया जाता है ।जिससे ये गुच्छे के रूप में तली मे बैठने लगते है।
कोलॉइडी कणों को संयुक्त करने के लिए स्कंदक का प्रयोग करते है ।स्कंदक के प्रयोग से ये कण आपस में बड़े बड़े गुच्छों का रूप ले लेते है और भार के कारण नीचे बैठ जाते है इनके लिए निम्न स्कंदक का प्रयोग किया जाता है।
i) फिटकरी Al2(SO4)3
ii) चूना Ca(OH)₂.
iii) H₂SO₄
iv) FeCl2
(3)-निस्यंदन (Filteration)
निस्यंदन को अवसादन के बाद किया जाता है।इसमें फिल्टरेशन की क्रिया की जाती है।इस क्रिया से बहुत महीन कण अलग हो जाते है।इस क्रिया में पदार्थो का ऑक्सीकरण भी होता है।
(4)- रोगाणुनाशक (Disinfectant)
अवसादन और निस्यंदन की क्रिया से रोगाणुओ को दूर नहीं किया का सकता है।इसी कारण रोगजनित सूक्ष्मजीव को दूर करने के लिए ये क्रिया अपनाई जाती है। इसके लिए सीवेज मे कुछ रसायनिक पदार्थ मिलात है।जैसे क्लोरीन , ब्लीचिंग पाउडर ,लाल दवा आदि ।
इस क्रिया के बाद सीवेज को किसी नदी या झील मे डाल दिया जाता है।
महत्वपूर्ण बिंदु (Important points )
1- सूक्ष्म जीव
ऐसे जीवाणुओं को सीधे आंखो से नहीं देखा जा सकता है।इनको देखने के लिए उपकरण की आश्यकता होती है।ये एक कोशिकीय जीवित प्राणी होते है। ये रोगजनित भी हो सकते है।इनके कारण हैजा, पेचिस, मलेरिया आदि बीमारियां उत्पन्न होती है।
वायुजीवी जीवाणु ऑक्सीजन की उपस्थिति में कार्बोनिक पदार्थो का विघटन कर देते है।
अवायुजीवी जीवाणु ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में पनपते है।ये जटिल यौगिको को सरल यौगिको मे विघटित कर देते है।
2 घरेलू अपशिष्ट जल
घरों से निकलने वाला गंदा जल ही घरेलू अपशिष्ट जल कहलाता है।ये जल स्नानगृह , रसोई घर शौचालयों से निकालने वाले जल होते है।ये जल घरों की नालियों से छोटे नालो मे होकर फिर सीवर लाइन से होते हुए नदियों मे गिरा दिया जाता है, जिससे नदियों का पानी दूषित हो जाता है।
3 औद्योगिक अपशिष्ट जल
उद्योगों से बहुत से अपशिष्ट पदार्थ निकलते है ।जैसे धूल, कोयला, अम्ल,क्षार ,फिनोल, सल्फाइड, सल्फेट, पारा, लेड आदि ।ये पदार्थ सीधे नदियों मे चले जाते है।जिससे जल दूषित हो जाता है।
4 सीवेज
घरों से निकलने वाला दूषित जल व फैक्ट्री, चर्मशला, बूचड़खाना, आदि से निकलने वाला जल ही सीवेज कहलाता है।
जल प्रदूषण नियंत्रण के उपाय
(1) अपशिष्ट जल को उपचारित करके है नदियों मे मिलान चाहिए।
(2)- ठोस अपशिष्ट को खुले स्थानों पर निपटान से रोका जाना चाहिए।
(3) रसायनिक कीटनाशकों के स्थान पर जैव कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए।
(4) मलजल के साथ वर्षा जल को नहीं जाने देना चाहिए।
(5) उर्वरकों के स्थान पर नाइट्रोजन पर यौगिकीकरण करने वाले पौधों का प्रयोग करना चाहिए।
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