ऊर्जा के उपयोग का पर्यावरण पर प्रभाव

 ग्लोबल वार्मिंग 

ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है ‘पृथ्वी के तापमान में वृद्धि और इसके कारण मौसम में होने वाले परिवर्तन’ पृथ्वी के तापमान में हो रही इस वृद्धि  के परिणाम स्वरूप बारिश के तरीकों में बदलाव, हिमखण्डों और ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और वनस्पति तथा जन्तु जगत पर प्रभावों के रूप के सामने आ सकते है।

तापमान बढ़ने से स्थान रहने योग्य नहीं रह जाएंगे ।नई नई बीमारियां उत्पन्न होंगी 

ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे अधिक जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैस हैं। ग्रीन हाउस गैसें, वे गैसें होती हैं जो बाहर से मिल रही गर्मी या ऊष्मा को अपने अंदर सोख लेती हैं। ग्रीन हाउस गैसों का इस्तेमाल सामान्यतः अत्यधिक सर्द इलाकों में उन पौधों को गर्म रखने के लिये किया जाता है जो अत्यधिक सर्द मौसम में खराब हो जाते हैं। ऐसे में इन पौधों को काँच के एक बंद घर में रखा जाता है और काँच के घर में ग्रीन हाउस गैस भर दी जाती है। यह गैस सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी सोख लेती है और पौधों को गर्म रखती है। ठीक यही प्रक्रिया पृथ्वी के साथ होती है। सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी की कुछ मात्रा को पृथ्वी द्वारा सोख लिया जाता है। इस प्रक्रिया में हमारे पर्यावरण में फैली ग्रीन हाउस गैसों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

कुछ अन्य गैसों के कारण भी ग्रीन हाउस प्रभाव होता है।इनमें मुख्यत: कार्बन डाई ऑक्साइड,मीथेन ,नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैसें है। 


ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव 


 (1) ग्लोबल वार्मिंग के चलते, कई पशु-पक्षी व जीव-जंतुओं की प्रजाति ही विलुप्त हो चुकी है|

(2) बहुत ठंडी जगह जहाँ, बारह महीनों बर्फ की चादर ढकी रहती थी| वहां बर्फ पिघलने लगी जिससे, जल स्तर मे वृद्धि होने लगी है|

(3) भीषण गर्मी के कारण रेगिस्तान का विस्तार होने लगा है| जिससे आने वाले वर्षो मे, और अधिक गर्मी बढ़ने की संभावना है|

(4) पृथ्वी पर मौसम के असंतुलन के कारण चाहे जब अति वर्षा, गर्मी, व ठण्ड पड़ने लगी है या सुखा रहने लगा है| जिसका सबसे बड़ा असर फसलो पर पड़ रहा है जिससे, पूरा देश आज की तारीख मे महंगाई से लड़ रहा है|

ग्लोबल वार्मिंग से पर्यावरण पर सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है| जिससे कोई भी व्यक्ति छोटे से लेकर बड़े तक किसी ना किसी बीमारी से ग्रस्त है| शुद्ध आक्सीजन न मिलने के कारण व्यक्ति घुटन की जिंदगी जीने लगा है|

 ग्लोबल वार्मिंग से बचाव के उपाय 

(1) अधिक अधिक पेड़ लगाने चाहिए।जिससे वायुमंडल मे उपस्थित  CO2  प्रकाश सं्लेषण की क्रिया हो CO2 ki मात्रा कम हो।

(2) भूगर्भीय  ईधन का प्रयोग कम करके तथा ऊर्जा के अन्य स्रोतों से जैसे सौर ऊर्जा ,पवन ऊर्जा ,आदि का विकाश करके ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम किया जा सकता है। 

ओज़ोन छिद्र या ओज़ोन रिक्तिकरण 

ओज़ोन परत के किसी स्थान पर पतला हो जाना ओज़ोन रिक्तकरण कहलाता है। कई प्रदूषक स्ट्रेटोस्फीयर मे पहुंच कर ओज़ोन परत को नष्ट करते है।जैसे कलोरो फ्लोरो कार्बन , मीथेन ,नाइट्रस ऑक्साइड आदि।

क्लोरो फ्लोरो कार्बन का प्रयोग रिफ्रजेटर, वातानुकूल यंत्र, परफ्यूम, शेविंग फोम अग्निशामक यंत्र आदि मे किया जाता है।CFC का जीवन काल 10-100 वर्ष का होता है।CFC का 90% वायुमंडल में चला जाता है। 

वायमंडल मे CFC विघटन पराबैगनी किरणों द्वारा होता है तथा इससे क्लोरीन मुक्त होती है।ये क्लोरीन फिर  O3 से क्रिया करके क्लोरीन ऑक्साइड बनाती है और तुरंत क्लोरीन आक्साइड विघटित होकर ऑक्सीजन परमाणु मुक्त कर देती है।  


अम्ल वर्षा (Acid Rain)

जब वर्षा जल का pH मान 5.7 से कम हो जाता है।तब ये अम्ल वर्षा कहलाती है।अम्लीय वर्षा (Acid rain), प्राकॄतिक रूप से ही अम्लीय होती है। इसका कारण यह है कि पॄथ्वी के वायुमंडल में सल्फर डाइआक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जल के साथ क्रिया करके नाइट्रिक अम्ल और गंधक का तेजाब बन जाता है। ... अमल वर्षा केंद्र मानचेस्टर है।अम्ल वर्षा में अम्ल दो प्रकार के वायु प्रदूषणों से आते हैं : SO2 और NO2, ये प्रदूषक प्रारंभिक रूप से कारखानों की चिमनियों, बसों व स्वचालित वाहनों के जलाने से उत्सर्जित होकर वायुमंडल में मिल जाते है।

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