ध्वनि प्रदूषण Noise pollution in hindi
ध्वनि प्रदूषण
ऐसी ध्वनि जो मानव मे परेशानी , चिड़चिड़ाहट ,सिर दर्द आदि पैदा करे ऐसे शोर को ध्वनि प्रदूषण कहा जाता है।
ध्वनि प्रदूषण के स्त्रोत
1- प्राकृतिक स्त्रोत
2- कृत्रिम स्त्रोत
1- प्राकृतिक स्त्रोत
ज्वाला मुखी का विस्फोट, बदलो की गर्जन , उल्का पिंड का गिरना ,भूकंप द्वारा भवन का गिरना आदि ध्वनि प्रदूषण के प्राकृतिक स्त्रोत है।
2- कृत्रिम स्त्रोत
इसके अंतर्गत कारखानों ,रेडियो , टेलिविजन, पत्थर के उद्योग, सीमेंट उद्योग, मिलो के सायरन, रेलगाड़ी, मोटरगाड़ियों, स्कूटर, मोटरसाइकिल, वायुयान, आदि।
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव
1- लगातार तेज आवाज मे रहने के कारण सुनने की क्षमता कम हो जाती है।
2- तेज़ आवाज़ के कारण सिर मे दर्द रहने लगता है।जिससे दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
3- जब शोर की सीमा 90 डेसीबल से उपर होने लगती है।तो त्वचा मे उतेज़ना उत्पन्न होती है।तथा मनुष्य के स्वभाव में क्रोध उत्पन्न होने लगता है।
4- लगातार तेज़ शोर से अल्सर, दिल की बीमारी उच्च रक्त दाब आदि उत्पन्न हो जाते है।
5- अधिक शोर मे कार्य क्षमता मे कमी होने लगती है।
6- शोर की अधिकता के कारण अनिद्रा का रोग लग जाता है।,
ध्वनि प्रदूषण का मापन
साउंड लेवल मीटर
ये एक साधारण उपकरण है।जो ध्वनि लेवल ज्ञात करने के लिए प्रयोग किया जाता है।इसके निम्न भाग होते है।
1- माइक्रोफोन (Microphone)
इसका कार्य साउंड वेब प्रेशर sound wave pressure को ग्रहण करना और दाब परिवर्तन को एलेक्ट्रोवोल्टेज मे परिवर्तित करना है।
2- एटन्यूटर (Attenuator)
इसका कार्य इलेक्ट्रिक वोल्टेज को परिवर्धित (Amplify) करना है।
3- इनपुट एम्प्लीफायर
इसका कार्य इलेक्ट्रिक सिग्नल को साधारण लेवल तक उठाना है।
4- वेइंग नेटवर्क
इसका कार्य उपकरण के सन्दर्भ में ध्वनि की विद्युत आवृति मे संशोधन करना है।
5- आउटपुट एम्प्लीफायर
इसका कार्य विद्युत के रूप में परिवर्तित ध्वनि के निकास की आवृति को Amplify karna hai।
ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम
1- स्त्रोत पर नियंत्रण
2- माध्यम पर नियंत्रण
3-प्राप्तकर्ता पर नियंत्रण
1- स्त्रोत पर नियंत्रण
स्त्रोत पर नियंत्रण के लिए शोर उत्पन्न करने वाली मशीनों मे साइलेंसर का प्रयोग करके शोर कम किया जाता है। घर्षण से उत्पन्न होने वाले शोर को लुब्रिकेशन करके कम किया जाता है। उद्योगों में मशीनों के साथ साथ ध्वनि शोषक पदार्थो का प्रयोग किया जाता है।जिससे ध्वनि की तीव्रता कम हो जाती है।
2- माध्यम पर नियंत्रण - माध्यम पर नियंत्रण निम्न विधियों द्वारा किया जाता है।
a- स्थिति - इसमें स्त्रोत और प्राप्तकर्ता के बीच की दूरी बढ़ा दी जाती है।
b- भवन विन्यास - भवन का विन्यास इस प्रकार होना चाहिए की भवन के कमरों को शोर न तो बाहर जा सके ना बाहर का शोर अंदर आ सके ।
c- दिशा में परिवर्तन - स्त्रोत से उत्पन्न ध्वनि की दिशा परिवर्तित करने हेतु मार्ग मे बड़े बड़े अवरोध खड़े कर दिए जाते है।
d- अवशोषण - ये एक प्रभावी तकनीक है ।इसमें शोर उत्पन्न करने वाली मशीनों को एक कमरे मे रखा जाता है।तथा उनकी दीवारों , फर्शों और छतो मे ध्वनि शोषक पदार्थ प्रयोग किए जाते है।
e- मफलर का प्रयोग - यदि ध्वनि स्रोतों को ऊनी मफलरो से ढक दिया जाए तो स्त्रोत से उत्पन्न ध्वनि का काफी बड़ा भाग इनके द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है।
(3) प्राप्तकर्ता पर नियंत्रण
तेज़ शोर से बचने के लिए कानों पर प्लग, मफलर ,ध्वनिरोधी हेलमेट, तथा मशीनों वाले कमरे में छोटा सा आवरण बनाके इसके दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।
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